Sunday 16 September 2012

राजनीति के इस अरण्य में कितने आदमखोर हो गए

चित्र -गूगल से साभार 
एक नवगीत -राजनीति के इस अरण्य में 
पढ़ते -पढ़ते 
आप, और हम 
लिखते -लिखते बोर हो गए |
राजनीति के 
इस अरण्य में 
कितने आदमखोर हो गए |

पाँव तले 
शीशों की किरचें 
चेहरों पर नाख़ून दिख रहे ,
अदब घरों में 
तने असलहे 
फिर भी हम नवगीत लिख रहे ,
कटी पतंगें 
कब गिर जाएँ 
हम मांझे की डोर हो गए |

अख़बारों 
के पहले पन्ने 
उनके जो बदनाम हो गए ,
कालजयी 
कृतियों के लेखक 
कलाकार गुमनाम हो गए ,
काले कौवे 
हंस बन गए 
सेही वन के मोर हो गए |

गिरते पुल हैं 
टूटी सड़कें 
प्रजातंत्र लाचार हो गया ,
राजनीति 
का मकसद सेवा नहीं 
सिर्फ़  व्यापार हो गया ,
क्रांतिकारियों 
के वंशज हम 
अब कितने कमजोर हो गए |

मुखिया ,
मौसम हुए सयाने 
खुली आँख में धूल झोंकते ,
हम सब तो 
असमंजस बाबू 
पांच बरस पर सिर्फ़ टोकते ,
साथी 
सूरज बनना होगा 
अन्धेरे मुँहजोर हो गए |

13 comments:

  1. गिरते पुल हैं
    टूटी सड़कें
    प्रजातंत्र लाचार हो गया ,
    राजनीति
    का मकसद सेवा नहीं
    सिर्फ़ व्यापार हो गया ,

    bilkul sach likha hai aapne ...
    sundar rachna ...!!

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  2. कभी मुँह पर ताले जड़े, कभी पेड़ पर चढ़े,
    देखो, हम तो ऐसे ही क्षितिज की ओर बढ़े।

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  3. बहुत सुन्दर....
    कटी पतंगें
    कब गिर जाएँ
    हम मांझे की डोर हो गए |

    लाजवाब अभिव्यक्ति......
    वाह!!!

    सादर
    अनु

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  4. इस नवगीत ने देश की वर्तमान पीड़ा को स्वर दिया है। ...गज़ब!

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  5. आज के हालात पर सटीक प्रस्तुति ... सुंदर गीत

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  6. आज की राजनितिक परिवेश पर सटीक रचना..
    बेहतरीन और लाजवाब...
    :-)

    ReplyDelete
  7. अख़बारों
    के पहले पन्ने
    उनके जो बदनाम हो गए ,
    कालजयी
    कृतियों के लेखक
    कलाकार गुमनाम हो गए ,
    काले कौवे
    हंस बन गए
    सेही वन के मोर हो गए ...

    बहुत खूब ... आज के हालात पे करार तप्सरा है ... लाजवाब नवगीत है ...

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  8. AAPKE BLOG PAR AAKAR BAHUT ACHCHHA
    LAGAA HAI . EK UMDA RACHNE PDHNE KA
    SAUBHAGYA PRAAPT HUA HAI .

    ReplyDelete
  9. AAPKE BLOG PAR AAKAR BAHUT ACHCHHA
    LAGAA HAI . EK UMDA RACHNE PDHNE KA
    SAUBHAGYA PRAAPT HUA HAI .

    ReplyDelete
  10. साथी
    सूरज बनना होगा
    अन्धेरे मुँहजोर हो गए |

    बहुत सच कहा है.अब तो यही एक उपाय बचा है...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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  11. कहीं ज़िंदगी खुद न आदमखोर बन जाय!

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  12. राजनीति का अरण्य ही ऐसा है जिस पर जितना कहो, लिखो कम ही कम है
    बहुत सार्थक सटीक प्रस्तुति

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  13. आप सभी शुभचिंतकों का हृदय से आभार |

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